अध्याय - समीक्षा:
- ईस्ट इंडिया कंपनी की नीतियों का जनता, राजाओं, रानियों, किसानों जमींदारों, आदिवासियों सिपाहियों, सब पर तरह-तरह से असर पड़ा |
- जो नीतियाँ और कारवईयाँ जनता के हित में नहीं होती थी या उनके भावनाओं को ठेस पहुँचाती थी तो लोग उनका विरोध करते थे |
- अठारहवीं सदी के मध्य से ही राजाओं और नबाबों की ताकत छीनने लगी थी | उनकी सत्ता और सम्मान दोनों छीनने लागे थे |
- बहुत सारे राजदरबारों में रेजिडेंट तैनात कर दिए गए थे |
- स्थानीय शासकों की स्वतंत्रता घटती जा रही थी | उनकी सेनाओं को भंग कर दिया गया था |
- उनके राजस्व वसूली के अधिकार व इलाके एक-एक करके छीने जा रहे थे |
- झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई चाहती थीं कि कंपनी उनके पति की मृत्यु के बाद उनके गोद लिए हुए बेटे को राजा मान ले |
- पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र नाना साहेब ने कंपनी से आग्रह किया कि उनके पिता को जो पेंशन मिलती थी वह उनकी मृत्यु के बाद उन्हें मिलने लगे |
- अवध की रियासत अंग्रेजों के कब्जे में जाने वाली आखरी रियासतों में से थी |
- अवध को अंग्रेजों ने 1856 में अपने कब्जे में ले लिया |
- गर्वनर जनरल डलहौजी ने ऐलान कर दिया कि रियासत का शासन ठीक से नहीं चल रहा है | इसलिए शासन को दुरुस्त करने के लिए ब्रिटिश प्रभुत्व जरुरी है |
- कंपनी ने मुग़लों के शासन को पूरी तरह से ख़त्म करने के लिए कंपनी द्वारा जारी सिक्कों पर से मुग़ल बादशाह का नाम हटा दिया गया |
- बहादुर शाह जफ़र अंतिम मुग़ल बादशाह थे |
- गांवों में किसान और जमींदार भारी-भरकम लगान और कर वसूली के सख्त तौर तरीकों से परेशान थे और ऐसे बहुत सारे लोग महाजनों से लिया कर्ज नहीं लौटा पा रहे थे |
- भारतीय सिपाही जो कंपनी में काम करते थे अपने वेतन, भत्तों और सेवा शर्तों के कारण परेशान थे |
- कई नए नियम सैनिकों के धार्मिक भावनाओं और आस्थाओं को ठेस पहुँचाते थे |
- भारतीय समाज में सुधार के लिए अंगेजों ने सती प्रथा को रोकने और विधवा बिवाह को बढ़ावा देने के लिए कानून बनाए गए |
- 1830 के बाद कंपनी ने ईसाई मिशनरियों को खुलकर काम करने और जमीन सम्पति जुटाने की भी छुट दे दी |
- 1850 में एक न्य कानून बनाया गया जिसमें ईसाई धर्म अपनाने की छुट दी गयी थी इसमें प्रावधान था कि अगर कोई भारतीय व्यक्ति ईसाई धर्म अपनाता है तो पुरखों की सम्पति पर उसका अधिकार पहले जैसा ही रहेगा |
- जब सिपाही इकठ्ठा होकर अपने सैनिक अफसरों का हुक्म मानने से इंकार कर देते है तो उसे सैनिक विद्रोह कहते है |
- मई 1857 में शुरू हुई सैनिक विद्रोह से भारत में कंपनी का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया था |
- सैनिक विद्रोह की शुरुआत मेरठ से शुरू हुई थी |
- 29 मार्च 1857 को युवा सिपाही मंगल पांडे को बैरकपुर में अपने अफसरों पर हमला करने के आरोप में फाँसी पर लटका दिया गया |
- सिपाहियों ने नए कारतूसों के साथ फौजी अभ्यास करने से इनकार कर दिया। सिपाहियों को लगता था कि उन कारतूसों पर गाय और सूअर की चर्बी का लेप चढ़ाया गया था।
- 85 सिपाहियों को नौकरी से निकाल दिया गया। उन्हें अपने अफसरों का हुक्म न मानने के आरोप में 10-10 साल की सजा दी गई। यह 9 मई 1857 की बात है।
- 10 मई को सिपाहियों ने मेरठ की जेल पर धावा बोलकर वहाँ बंद सिपाहियों को
आजाद करा लिया। उन्होंने अंग्रेज अफसरों पर हमला करकेउन्हें मार गिराया। - उन्होंने बंदूक और हथियार कब्शे में ले लिए और अंग्रेजों की इमारतों व संपत्तियों
को आग के हवाले कर दिया। - 10 मई की रात को घोड़ों पर सवार होकर मुँह अँधेरे ही दिल्ली पहुँच गई। जैसे ही उनके आने की ख़बर फैली, दिल्ली में तैनात टुकड़ियों ने भी बगावत कर दी। यहाँ भी अंग्रेज अफसर मारे गए।
- वे बादशाह से मिलना चाहते थे। बादशाह अंग्रेशों की भारी ताकत से दो-दो हाथ करने को तैयार नहीं थे लेकिन सिपाही भी अडे़ रहे।
- वे जबरन महल में घुस गए और उन्होंने बहादुर शाह ज़प़फर को अपना नेता घोषित कर दिया।बूढ़े बादशाह को सिपाहियों की यह माँग माननी पड़ी।
- स्वर्गीय पेशवा बाजीराव के दत्तक पुत्रा नाना साहेब कानपुर के पास रहते थे। उन्होंने सेना इकट्ठा की और ब्रिटिश सैनिकों को शहर से खदेड़ दिया। उन्होंने खुद को पेशवा घोषित कर दिया।
- उन्होंने ऐलान किया कि वह बादशाह बहादुर शाह जफर के तहत गवर्नर हैं।
- लखनउ की गद्दी से हटा दिए गए नवाब वाजिद अली शाह वेफ बेटे बिरजिस व़फद्र को नया नवाब घोषित कर दिया गया।
- बिरजिस कद्र ने भी बहादुर शाह ज़फर को अपना बादशाह मान लिया। उनकी माँ बेगम हज़रत महल ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोहों को बढ़ावा देने में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
- झाँसी में रानी लक्ष्मीबाई भी विद्रोही सिपाहियों के साथ जा मिलीं। उन्होंने नाना साहेब के सेनापति ताँत्या टोपे के साथ मिलकर अंग्रेजों को भारी चुनौती दी।
- सितंबर 1857 में दिल्ली दोबारा अंग्रेजों केकब्शे में आ गई। अंतिम मुग्ल बादशाह बहादुर शाह जफर पर मुकदमा चलाया गया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गई।
- उनके बेटों को उनकी आँखों के सामने गोली मार दी गई। बहादुर शाह और उनकी पत्नी बेगम शीनत महल को अक्तूबर 1858 में रंगून जेल में भेज दिया गया। इसी जेल में नवंबर 1862 में बहादुर शाह जफर ने अंतिम साँस ली।
- मार्च 1858 में लखनउ अंग्रेजों केकब्जे में चला गया। जून 1858 में रानी लक्ष्मीबाई की शिकस्त हुई और उन्हें मार दिया गया।
- ताँत्या टोपे मध्य भारत के जंगलों में रहते हुए आदिवासियों और किसानों की सहायता से छापामार युद्धचलाते रहे।
- अंग्रेजों ने लोगों का विश्वास जीतने के लिए वफादार भूस्वामियों के लिए ईनामों का ऐलान कर दिया।
- उन्हें आश्वासन दिया गया कि उनकी जमीन पर उनके परंपरागत अधिकार बने रहेंगे।
- जिन्होंने विद्रोह किया था उनसे कहा गया कि अगर वे अंग्रेजों के सामने समर्पण कर देते हैं और अगर उन्होंने किसी अंग्रेज की हत्या नहीं की है तो वे सुरक्षित रहेंगे और जमीन पर उनके अधिकार और दावेदारी बनी रहेगी।
- इसके बावजूद सैकड़ों सिपाहियों, विद्रोहियों, नवाबों और राजाओं पर मुकदमे चलाए गए और उन्हें फाँसी पर लटका दिया गया।
- अंग्रेजों ने 1859 के आखिर तक देश पर दोबारा नियंत्रण पा लिया था लेकिन अब वे पहले वाली नीतियों के सहारे शासन नहीं चला सकते थे।
अंग्रेजों ने जो अहम बदलाव किए वे निम्नलिखित हैं :
- 1. ब्रिटिश संसद ने 1858 में एक नया कानून पारित किया और ईस्ट इंडिया कंपनी के सारे अधिकार ब्रिटिश साम्राज्य के हाथ में सौंप दिए ताकि भारतीय मामलों को ज्यादा बेहतर ढंग से सँभाला जा सके। ब्रिटिश मंत्रिमंडल के एक सदस्य को भारत मंत्रा के रूप में नियुक्त किया गया। उसे भारत के शासन से संबंधित मामलों को सँभालने का जिम्मा सौंपा गया। उसे सलाह देने के लिए एक परिषद का गठन किया गया जिसे इंडिया काउंसिल कहा जाता था। भारत के गवर्नर-जनरल को वायसराय का ओहदा दिया गया। इस प्रकार उसे इंगलैंड के राजा/रानी का निजी प्रतिनिधि घोषित कर दिया गया। फलस्वरूप, अंग्रेज सरकार ने भारत के शासन की जिम्मेदारी सीधे अपने हाथों में ले ली।
- 2. देश के सभी शासकों को भरोसा दिया गया कि भविष्य में कभी भी उनके भूक्षेत्रा
पर कब्जा नहीं किया जाएगा। उन्हें अपनी रियासत अपने वंशजों, यहाँ तक कि दत्तक पुत्रों को सौंपने की छूट दे दी गई। लेकिन उन्हें इस बात के लिए प्रेरित किया गया कि वे ब्रिटेन की रानी को अपना अधिपति स्वीकार करें। इस तरह, भारतीय शासकों को ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन शासन चलाने की छूट दी गई। - 3. सेना में भारतीय सिपाहियों का अनुपात कम करने और यूरोपिय सिपाहियों की
संख्या बढ़ाने का फैसला लिया गया। यह भी तय किया गया कि अवध, बिहार, मध्य
भारत और दक्षिण भारत से सिपाहियों को भर्ती करने की बजाय अब गोरखा, सिखों और पठानों में से जयादा सिपाही भर्ती किए जाएँगे। - 4. मुसलमानों की जमीन और संपत्ति बड़े पैमाने पर जब्त की गई। उन्हें संदेह व
शत्रुता के भाव से देखा जाने लगा। अंग्रेजों को लगता था कि यह विद्रोह उन्होंने ही खड़ा किया था। - 5. अंग्रेशों ने फैसला किया कि वे भारत वके लोगों वके धर्म और सामाजिक रीति-रिवाजों का सम्मान करेंगे।
- 6. भूस्वामियों और जमींदारों की रक्षा करने तथा जमीन पर उनके अधिकारों को स्थायित्व देने के लिए नीतियाँ बनाई गईं।